एक वीरांगना की विरह वेदना (देशप्रेम) -12-Feb-2022
एक वीरांगना की विरह वेदना ( देशप्रेम)आई थी दुल्हन बन घर में,नये अरमान लिए दिल में,चारों तरफ सुख की घड़ी थी,की अचानक चारों घर में सन्नाटा छा गया,पति था उसका फ़ौज में,जो शहीद हो गया फ़ौज की लड़ाई में,आज फिर एक विधवा की विरह वेदना,दुःख में वो टूट चुकी,सपने सरे टूट गए,लगाकर माथे पर विधवा का टिका,समाज के तानो से कितना रोइ होंगी,किसी ने अभागन कहा,आखिर गलती क्या थी उसकी,है कोई? जो उसका दुःख बाटे,है कोई? जो उसकी पिड़ा समझें,टूटी हुई खुद को मौन बनाकर,बन बैठी जैसे पुतला,समाज ने दुत्कारा उसे,दुःख रूखे -सूखे सपने सारे अधूरे,लेकिन आज उसकी प्रतीक्षा ना कोई करता,उसकी रोती हुई आँखों को ना कोई चुप कराता,क्या बीती होंगी उसपे,बीते ना एक महीने भी,हाथों की मेहंदी ना छुटी,सफ़ेद साड़ी जब उसने पहनी,सिंदूर उसका सहम सागया,चूड़ियाँ जब उसकी टूटी,मंदिर मे बंद दरवाजे हुए,समाज विधवा को अगर अपनाता,फिर कोई पिता अपनी बेटी के जीवन को अधूरा ना कहता,क्या हक़ नहीं उसे लाल जोड़े पहनने का,अपने सपनो को साकार कर रंगों में रंग जाने का,जब -जब आती होंगी किसी शहीद की खबर,फिर वो विधवा दुःख से पीड़ित होती होंगी,सांसे पल भर उसकी रुक जाती होंगी,और उसको अपनी टूटी चूड़ी, लाल जोड़ो की याद आती होंगी।प्रिया पाण्डेय "रोशनी"उत्तरपाड़ा, पश्चिम बंगाल
Gunjan Kamal
12-Feb-2022 11:00 PM
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌
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Swati chourasia
12-Feb-2022 08:34 PM
Wahh bohot hi khubsurat rachna 👌👌
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Seema Priyadarshini sahay
12-Feb-2022 08:32 PM
बहुत खूबसूरत रचना
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